राष्ट्रमण्डल देशों के खेल इंग्लैण्ड मे आयोजित हो रहे हैं , राष्ट्रमण्डल देश वे हैं जिन पर अंग्रेजों आर्थात इंग्लैण्ड का शासन था। कहते हैं प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त होती है उसे संवारा जा सकता है मेहनत और लगन के दम पर , अगर बात करें औलम्पिक की या राष्ट्रमण्डल खेलों की तो इस बार भी भारत के खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहतर है तथा भारोत्तोलन सहित महिला क्रिकेट में भारतीय खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं जिनकी आगुवाई स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई चानू ने की है।
मीराबाई चानू के साथ ही भारत की झोली में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वालों में अंचिता शेउली , जेरेमी लालनिरुंगा हैं , यहां यह देखना लाजमी हो जाता है कि ये भारत के लिए स्वर्ण पदक विजेता सुदूर पूर्वोत्तर भारत के ग्रामीण अंचलों से आते हैं , विषम आर्थिक सामाजिक परस्थितियों से लड़ते हुए अपनी प्रतिभा के दम पर इन खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है, हमारे ग्रामीण अंचलो और पहाड़ी राज्यों मे बालक बालिकाओं में हर क्षेत्र में बेशुमार प्रतिभा भरी है लेकिन संशाधन विहीनता , सरकारों की ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में खेलों को प्रोत्साहन को लेकर लगभग अरुचि की स्थति के चलते सुदूर ग्रामीण अंचलों के प्रतिभावान खिलाड़ीयों को अपनी योग्यता और प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर नही मिल पाता, आज भी सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के केन्द्र सरकारी ही हैं और हर माध्यमिक विद्यालय में एक खेल प्रशिक्षक होता है लेकिन यह प्रशिक्षक खेलों के लिए प्रतिभाओं की तलाश में सफल नही हैं , अब केन्द्र तथा राज्य सरकारों को खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षा के साथ साथ खेलों को भी विद्यालयी शिक्षा में एक बिषय के रूप में शामिल करना चाहिये , पूर्वोत्तर के साथ ही भारत के सीमान्त राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों के आयोजन के लिए बजट की व्यवस्था देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रोत्साहन राशि बढ़ाने और सबसे पहले विद्यालय स्तर पर खेलों को प्रोत्साहन और योग्य खेल प्रशिक्षकों की तैनाती की जानी चाहिए वर्तमान में जो खेल प्रशिक्षक विद्यालयों में तैनात हैं उनको प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन हो अयोग्य प्रशिक्षकों को दूसरी जगह समायोजित किया जाये जिससे कि प्रतिभाओं को आगे आने का बेहतर मौका मिल सके , इसके साथ ही बालिकाओं के लिए महिला खेल प्रशिक्षकों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए आजादी के इतने वर्ष बीत जाने का वावजूद यह कटु सत्य है क खेल प्रशिक्षक से लेकर खेल संघो पर अब भी पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है अब समय आ गया है कि सरकार खेल संघों मे पुरुषों के साथ ही महिलाओं को समान अनुपात में प्रतिनिधित्व दे इसके साथ ही सरकारी तथा निजी विद्यालयों में भी महिला खेल प्रशिक्षकों की अनिवार्य तैनाती को लेकर प्रावधान करे जिससे कि देश के लिए पदक जीतने वाली कई मीराबाई चानू तैयार की जा सकें (सम्पादकीय आलेख- अजय तिवाड़ी)

