*रक्षा बंधन (राखी) का त्योहार*
रक्षा बंधन का त्योहार भारतीय धर्म और संस्कृति के अनुसार श्रावण माह (अगस्त माह ) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यूं तो हर भाई और बहन के लिए प्रति दिन रक्षा बंधन का त्योहार होता हैं, क्योंकि हर भाई की बहन अपनी रक्षा समाज में चाहती हैं। और हर भाई का कर्तव्य हर मां, बहन की रक्षा करने का कर्त्तव्य होना चाहिए।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी हमारे समाज में प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाई, चारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्य पुराण के अनुसार इंद्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है-
*येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।*
*तेनत्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥*
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी) तुम अडिग रहना, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।
आजकल हमारे समाज में बहुत अच्छे प्रचलन देखने को मिलते है, लड़कियां अपने सगे भाई के साथ,साथ देश के प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्री, राज्यपाल, देश की रक्षा करने वाले जांबाज सिपाही, पुलिस बलों, कोई महानायक, प्रसिद्ध व्यक्ति, शिक्षकों, पेड़ पौधों आदि को रक्षा सूत्र में राखी पहनाकर अपनी और समाज की सुरक्षा की कामना करती हैं। ताकि समाज में हर स्त्री, मां,बहन को आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से कोई खतरा महसूस न हो, जिससे समाज में हर स्त्री स्वतंत्र जीवन यापन कर सके।
बहनें तो राखी के सूत्रों में जिस प्रकार अपनी सुरक्षा के लिए अपने भाईयों से आशीर्वाद वचन लेती हैं, ठीक उसी तरह हमारे समाज में पुरुषों को भी अपना दृष्टि कोण नजरिया महिला समाज के प्रति बदलना होगा, क्योंकि आए दिन महिलाओं के साथ कई अप्रिय घटनाएं सुनने में आती रहती है। और समाज में महिलाओं की सुरक्षा बहुत ही दयनीय स्थिति में नजर आती रहती हैं। जिस दिन इंसान का नजरिया महिलाओं के प्रति बदल जाएगा, जैसे मेरी मां और बहन उसी दृष्टि से समाज में महिलाओं को देखने और उनसे बर्ताव करने का नजरिया बदल जाएगा, वास्तव में राखी (रक्षा बंधन) का त्योहार हमारे समाज में हर्षोल्लास से मनाया जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं और प्रचलित कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के अधार पर रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।
इतिहास का एक अन्य उदाहरण कृष्ण व द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
आज के युग में समाज में महिलाएं, बालिकाएं घर के बाहर, बसों में, रेल में, सड़को पर,विद्यालयों, महाविद्यालययों, किसी ऑफिस में असुरक्षित हैं। यहां तक कि घर परिवार भी महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए असुरक्षित है। रक्षाबंधन जैसा पर्व हमें एहसास दिलाता है कि हम उनकी रक्षा के लिए आगे आकर पहल करें। रक्षाबंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित होती है।
संकलन:-
सुधीर डोबरियाल (शिक्षक)
विकास क्षेत्र- यमकेश्वर
पौड़ी गढ़वाल।



