उत्तराखण्डःसरकारी नौकरियों की बंदरबांट की अनथक व्यथा

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 चारों तरफ प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सोशल मीडिया,  मे कई दिनों से हर दिन भर्ती घोटाले में धरपकड़ हो रही है । बात उधडते उधडते यहां तक आ गई है कि यह मात्र 1 दिन का खेल नहीं है ।निश्चित रूप से यह बहुत पहले से चल रहा होगा । इतनी सुनियोजित प्लानिंग 1 दिन में नहीं हो सकती है। आटे में नमक की कहावत तो यहां परंपरागत चलन में हमेशा से रही है ।परंतु यहां तो नमक में कहीं आटा दिख ही नहीं रहा है । इस चरमोत्कर्ष  के लिए सिर्फ प्यादे को जिम्मेदार नहीं मान सकते । बिना वजीर के यह कारनामा संभव नहीं है । हमें इस बहस में भी नहीं पडना है कि वजीर किस  खेमे का है ।हमारा चिंतन तो इस बात पर है कि उन्होंने किया क्या है । और इसका प्रभाव समाज मे कितना व्यापक है।संसद विधानसभाओं में अध्यक्ष का पद लोकतंत्र के मंदिर के पुजारी जैसा होता है जिस को साक्षी मानकर लोकतंत्र के इस यज्ञ में लोक कल्याण , संरक्षण की योजनाएं बनती है । और स्वस्थ समृद्ध समाज के लिए काम होता है । परंतु जब वही पुजारी अपनों का वास्ता देकर उस मंदिर को खुर्द बुर्द करने लगे तो पूरा समाज चेतना शून्य हो जाता है । और नैराश्य में चला जाता है । जैसे कि आजकल है । कोई उत्तेजना न किसी से कोई आशा न  वाद विवाद ,बस एक सन्नाटा पसरा है । चारों तरफ  क्यों     ?  इतनी नाउम्मीदी । इसको उसको मुंह में कपड़ा डालकर पकड़ तो रहे हैं पर । सामान्य जनमानस मौन इस प्रकार शून्यता लोकतंत्र के लिए असाध्य रोग की तरह है  जो अपने अंतिम चरण में होता है । तो सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया जाता है । जहां तक मेरी दृष्टि पहुंच रही है इस मुद्दे पर  लोग भगवान को भी नहीं घसीट रहे हैं ।शायद लोग समझ चुके हैं कि यह तो भगवान की पकड़ से भी बाहर है । जो छात्र वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे थे । कुंठित है  उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय  लग रहा है ।ये सिस्टम से ही नहीं अपने जीवन से भी मानसिक रूप से अपाहिज महसूस कर रहे हैं ।ईश्वर करें उनकी कुंठा  जल्द खत्म हो । ताकि समाज में कोई विपरीत प्रभाव देखने को न मिले । उन गरीब मां बापो की तरफ भी देखिए जो अपना पेट काट काटकर अपने को तिल तिल खफा कर बच्चों की कामयाबी का सपना देखते देखते जर्जर हो चुके हैं |वह सालों से इसमें नहीं तो उसमें कहीं ना कहीं की उम्मीद में जी रहे थे । और अपने बच्चों को अगली  तैयारी का ढाँढस बधा रहे थे। वह भी सिरे से टूट चुके हैं ।जिन बहनों ने भाइयों भाई को आगे बढ़ाने के लिए अपनी कुर्बानी दी हो उसकी कल्पना भी कर ले । किसी का बैंक लोन है किसी का मकान गिरवी, जेवर गहने तो आम बात है ।अपना सब कुछ लगाने के बाद वृद्ध मां बाप ने अपने रोगो को इसलिए दबा रहे थे कि जब बेटा कहीं लग जाएगा तो अच्छा इलाज करवाएंगे ।कई बहिने शादी के इंतजार में बैठी है। कि जब भैय्या नौकरी पर लगेगे तो I इस कुकृत्य मे तुमने सिर्फ लायक के हिस्से की नौकरी ही नहीं खाई है। सामाजिक ताने-बाने को भी रौंदा है लोगों की उम्मीदों को क्षत विक्षत किया है ।इस मातृभूमि के शरीर का ही नहीं आत्मा को भी कत्ल किया है । अब पता नहीं विश्वास बहाली कब होगी ।कितना वक्त लगेगा तब तक  समाज का क्या होगा ।  यह किस दिशा में जाएगा ईश्वर मालिक है । पर सोचो कोई मसीहा आया और उसने विश्वास बहाली का चमत्कार दिखाया । और समाज फिर आदर्श लोकतंत्र खुशहाली ने के रास्ते पर चल पड़ा । तो उस दिन उस समय की पीढ़ी आज का इतिहास पढेगी तो सिर्फ उन्हे ही नहीं धिक्कारेगी जो इसके लिए जिम्मेदार है । बल्कि उन्हें भी कभी माफ नहीं करेगी जो खामोशी से लाचारी का आवरण पहनकर मूक दर्शक बने हैं ।: आलेख और संकलन- महेन्द्र जदली


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